1.
भीड़ की दिशा तय हो
तय हो कदमों का नाप
तय हो संख्या
तय हो कतार
जूतों के प्रकार
ताकि भविष्य के इतिहास में मिलें
खालिस समानांतर लकीरें
जमीन पर गहरी छपी
और हम गर्व करें
सबसे व्यवस्थित सभ्यता स्थापित करने का
2.
मॉरल साइंस की किताब में
झूठी कहानियां होती हैं
ये मुझे मॉरल साइंस पढ़ने के पहले से पता था
विज्ञान के एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट मुझे
करने से पहले से पता था
पहले से जानती थी मैं कि इतिहास में
किसे ‘महान’ लिखना है
और देशों राज्यों धर्मों का अस्तित्व
सब कुछ अंदर गढ़ा जा चुका था
और जानते थे यह सब मेरे साथ के तमाम बच्चे
पर हमें अनजान बने रहना था
अपनी जानकारी से
इसलिए हमें दी गयीं
नए जिल्द में पुरानी बातें
हम चकित होते रहे सामान्य बातों पर
और रहे सामान्य
चकित होने वाली चीजों पर
सरल को जटिल कर सुलझाते रहे
और जटिल को सरलता से नकार गए
चंद चीजों को कई वर्षों तक
दुहराते रहे
नामों, तारीखों, अंकों, घटनाओं की
फेहरिस्त बढ़ाते रहे
कुछ नया सीखने को बच्चे
स्कूल जाते रहे
3.
आसमान में अब घुलती है धूप
हल्दी जैसे चढ़ती है उसके बदन पर
खारे बूंदों का बरसता है बादल
काला पत्थर चमकता है धुलकर
परछाईयां घटती हैं हर दोपहर
लपकती हैं पिछली सीट
ठहरती है सड़क हौले से
छेकती है छांव से नींद
लाल नाखूनों से याद आती है
छुटकी साली
और फिर उसकी बहन
सांझ लजाती है
ओढ़ लेती है पीली धूप का आंचल
दांत में दबा लेती है किनारी
और गीला हो जाता है सूरज
आंख से टपकता नहीं
सीने में सन जाता है
दो गोरी टांगें और कंधे
आते हैं चले जाते हैं
कत्थई मेहंदी वाले सांवले पांव जम जाते हैं
धूप में घुलता है कत्थई
लाल को नारंगी करता है कत्थई
पपड़ी जैसा होंठो से
उधड़ता है कत्थई
बढ़ता है परछाईयों का बोझ
भागता है दिन फिर तीन पहियों पर
उड़ता है रंग पीली बिहौती का
सूखता है बादल
बहते हैं तेज कदम
कि अबरी गिल्लट का पायल बनेगा
दोपहर छनक के आएगी
और झनकती हुई दोपहर को
ये शाम कमाएगी
पीली बिहौती: वह पीले रंग का वस्त्र जो ब्याह के वक़्त दुल्हन पहनती है
अबरी: अबकी बार
गिल्लट: एक धातु जिसका पायल बनवाने की ख़्वाहिश इस कविता में है
[किसी काव्य का आलोक जब एक सधा-सा समीकरण बनाने की स्वतंत्रता नहीं देता है, तब उस जगह पर कोई कवि कुछ ज्यादा जरूरी हो जाता है. उसमें कोई ऋजुरेखीय गति नहीं, न कोई टेल-टू-हेड का एक समीकरण ही, ऐसे में जो उन्मुक्तता सामने आती है, वह कई सम्भावनाओं के लिए बात करती है. कोई एकाकी शिल्प ग्रहण न करने का यह आग्रह कविता को खोलने के नए रास्ते मुहैया कराता है. मोहिनी सिंह की इन तीन कविताओं में वह अंतर मौजूद है. बुद्धू-बक्सा मोहिनी का आभारी है कि उन्होंने कविताएं प्रकाशन के लिए दीं. सम्भव है कि उनके कुछ काम हमें आगे भी यहां देखने को मिलेंगे.]