सम्पूर्ण जीवन मैं कौतूहल से ब्याही हुई एक दुल्हन थी

मैरी ऑलिवर की कुछ कविताएं

“कविता कोई व्यवसाय नहीं है, यह जीवन जीने का तरीका है. यह एक ख़ाली टोकरी है, आप अपना जीवन इसमें डालते हैं और उससे कुछ तो बना ही लेते हैं”, कविता को जीवन पद्धति मानने वाली अमरीकी कवि मैरी ऑलिवर अमरीका की सबसे चहेती कवि थीं. इस पहचान के पीछे उनकी सहज और ग्राह्य भाषा, कविताओं में प्रकृति और जीवन का शामिल होना मूल कारण हैं. ऑलिवर ने समकालीन कविता को एक नयी परिभाषा दी और आम जनता तक कविता को पहुंचाया, जो उसकी क्लिष्टता के कारण उससे दूर हो गयी थी. ये कविताएं प्रकृति और मानवता के बीच एक पुल की तरह हैं, जो बताती हैं कि किस तरह घास, झींगुर, सूरज या पक्षी अपनी प्राकृतिक रोशनी से इंसानी दुनिया में प्रेम का उजाला ला सकते हैं. किस तरह बिना कठिन और असाध्य हुए भी कविता की जा सकती है और उसे हाशिये पर पड़े उस आख़िरी इंसान तक पहुंचाया जा सकता है, जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. एक दुःखद बचपन का शिकार रही इस कवि को उनकी सकारात्मक और सरल कविताओं के लिए ‘प्रेरक’ एवं ‘आसान’ कहकर खारिज़ करने का प्रयास भी किया गया पर उन्हें पाठकों के मन से बेदख़ल कर पाना मुश्किल साबित हुआ. 

– रश्मि भारद्वाज

Mary Oliver. Photograph by Mariana Cook

एक आगंतुक 

उदहारण के लिए मेरे पिता 
जो कभी नीली आंखों वाले युवा थे 
रात के गहन अंधकार में लौटते हैं 
और बेतहाशा दरवाज़ा पीटते हैं 
अगर मैं जवाब देती हूं
तो मुझे तैयार रहना होगा 
उनके चिपचिपे चेहरे, 
कड़वाहट से फूले उनके निचले होंठ के लिए 
और इसलिए, बहुत समय तक 
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया 
और घंटों उनकी दस्तकों के दौरान 
बेचैनी से करवटें बदलती रही
लेकिन आख़िरकार वह रात आई 
जब मैं अपने बिस्तर से उठी  
और लड़खड़ाते हुए  
खोल दिया दरवाज़ा 
मैं जान चुकी थी कि मैं सुरक्षित थी 
और उन्हें झेल सकती थी 
एक दयनीय और खोखले इन्सान को  
जिसका न्यूनतम सपना भी उसके अन्दर जम चुका था 
और ख़त्म हो चुकी थी सारी क्षुद्रता 
मैंने उनका अभिवादन किया और घर के अन्दर बुलाया 
लैम्प जलाकर, उनकी ख़ाली आंखों में झांका 
जहां, आख़िरकार, मुझे वह नज़र आया 
जिससे एक बच्चा प्रेम करना चाहेगा  
मैंने देखा कि प्रेम क्या कर सकता था 
अगर हमने समय से किया होता प्रेम 

जब मृत्यु आती है 

जब मृत्यु आए
जैसे कि शरद ऋतू का भूखा भालू 
जब मृत्यु आए और मुझे ख़रीदने के लिए अपने बटुए से सारे चमकीले सिक्के निकाले 
और झट से बंद कर दे उसका मुंह 
जब मृत्यु आए
जैसे कि खसरा 
जब मृत्यु आए
जैसे कि कंधे की हड्डियों के बीच एक हिमखंड 
मैं दरवाज़े के बाहर ढेर सारी उत्सुकता लेकर कदम रखना चाहती हूं 
यह कल्पना करते हुए कि कैसी होगी, वह अंधेरे की झोपड़ी  
और इसलिए मैं अपने आसपास सब कुछ देखती हूं 
बहनापे और बंधुत्व के भाव से 
और पाती हूं कि समय सिर्फ़ एक विचार है  
और अनंतता एक अन्य संभावना हो सकती है 
सोचती हूं कि जीवन एक फूल की तरह है उतना ही आम जितना कि खेत में खिली एक कुमुदनी और उतना ही विलक्षण   
और हर नाम ज़ुबान पर एक आरामदायक संगीत की तरह है 
संगीत की तरह ख़ामोशी की ओर बढ़ता हुआ 
हर शरीर में शेर का साहस है और कुछ कीमती है पृथ्वी के लिए 
और जब यह ख़त्म हो जाए तो मैं कहना चाहती हूं 
कि सम्पूर्ण जीवन मैं कौतूहल से ब्याही हुई एक दुल्हन थी
मैं एक दूल्हा थी जिसके बांहों में थी यह सारी दुनिया 
जब यह ख़त्म हो, मैं नहीं चाहती सोचना 
कि क्या मैंने अपने जीवन को कुछ विशेष और वास्तविक बनाया 
मैं नहीं चाहती पाना ख़ुद को दुखी, भयभीत या द्वन्द से भरा हुआ 
नहीं चाहती कि अंत में मुझे यह प्रतीत हो 
कि मैं इस दुनिया में सिर्फ़ घूमकर गुज़र गयी 

जंगली कलहंस*  

तुम्हें अच्छा बनने की कोई ज़रूरत नहीं 
तुम्हें अपने घुटनों पर आने की ज़रूरत नहीं 
रेगिस्तान में सैकड़ो मील चलकर पछताते हुए 
तुम्हें बस अपनी देह के कोमल पशु को छोड़ देना है प्रेम करने के लिए 
उससे, जिसे वह प्रेम करता है 
तुम मुझसे कहो अपनी निराशाएं और मैं कहूंगी तुमसे अपनी 
इस दौरान चलती रहेगी दुनिया 
इस दौरान सूरज और बारिश की पारदर्शी बूंदें घूमती रहेंगी परिदृश्य में 
घास के मैदानों और घने पेड़ों पर 
पहाड़ों और नदियों पर 
इसी दौरान जंगली कलहंस, स्वच्छ नीले आकाश में 
लौट रहें होंगे फिर से घर की ओर 
तुम कोई भी हो, कितने भी एकाकी 
यह दुनिया तुम्हारी कल्पना के लिए खुली है 
तुम्हें बुलाती है उसी जंगली कलहंस की तरह, निष्ठुरता और उत्तेज़ना से 
बार बार तुम्हारे स्थान की घोषणा करती  
चीज़ों के परिवार में

*एक बतखनुमा पक्षी जिसे Goose कहते हैं.

सूरज  

क्या तुमने अपने जीवन में कोई भी चीज़ देखी है इतनी अनोखी 
जिस तरह से हर शाम सूरज़
शिथिलता और शांति से 
बहता है क्षितिज़ की ओर 
एवं बादलों और पहाड़ों की ओर 
या अस्त व्यस्त समुद्र में 
और अदृश्य हो जाता है 
और फिर किस तरह उभर आता है बाहर 
अंधकार से 
हर सुबह 
दुनिया के दूसरे हिस्से में 
किसी लाल फूल की तरह
अपने दिव्य ईंधन के सहारे ऊपर उठता हुआ 
एक सुबह गर्मी की शुरुआत में,
अपनी संतुलित शाही दूरी पर 
कहो, क्या कभी तुमने महसूस किया है किसी चीज़ के लिए
ऐसा बेक़ाबू प्रेम—
क्या तुम्हें लगता है कहीं भी, किसी भी भाषा में,
ऐसा शब्द है
उस उल्लास के लिए
जो तुम्हें तृप्त करता है
जब पहुंचता है सूरज 
तुम तक
गर्म करता है तुम्हें
जब तुम खड़े होते हो 
खाली हाथ
या क्या तुम भी 
इस दुनिया से विमुख हो गए हो 
या कि हो चुके हो पागल  
सत्ता के लिए 
वस्तुओं के लिए 

यात्रा 

एक दिन आख़िरकार तुम जान गयी कि तुम्हें करना क्या था और बढ़ गयी 
जबकि तुम्हारे आसपास की आवाज़ें चीख़ती रहीं 
अपनी बेज़ा हिदायतें
जबकि हिलने लगा पूरा घर
और तुमने महसूस किया अपनी एड़ियों में वही पुराना खिंचाव 
हर आवाज़ चीख़ रही थी
‘संवारो मेरा जीवन’
लेकिन तुम रुकी नहीं
तुम जान चुकी थी, तुम्हें करना क्या था
जबकि हवा ने अपनी सख़्त उंगलियों से प्रहार किया था उसकी नींव पर ही
जबकि भयानक थी उनकी उदासी, 
पहले ही बहुत देर हो चुकी थी
डरावनी काली रात थी 
और सड़क पर बिखरी थी टूटी टहनियां और पत्थर
लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता 
जब तुमने पीछे छोड़ दी उनकी आवाज़ें 
चमकना शुरू हो गए तारे
बादलों की चादर से 
और एक नई आवाज़ को तुमने हौले से पहचाना,
यह तुम्हारी आवाज़ थी, जो तुम्हारे साथ बनी हुई थी 
जब तुम इस दुनिया में गहरे और गहरे उतरती जा रही थी
प्रतिबद्ध होकर करने के लिए
वह एकमात्र कार्य जो तुम कर सकती थी
दृढ़ हो बचाने के लिए 
वह एकमात्र जीवन जो तुम बचा सकती थी

दुःख के उपयोग
(मैंने सपने में देखी यह कविता)

कोई, जिसे मैंने कभी प्रेम किया था 
मुझे अंधेरों से भरा एक बक्सा दे गया 

मुझे यह समझने में सालों लगे 
कि यह भी एक उपहार था 

गर्मी का दिन 

किसने गढ़ी ये दुनिया?
किसने रचा हंस और काले भालू को?
किसने बनाया टिड्डी को? 
मेरा मतलब है वह टिड्डी जो अभी घास से उछल कर बाहर आई है
और मेरे हाथ से चीनी खा रही है
जो अपने जबड़ों को ऊपर नीचे की बजाय आगे पीछे चला रही है
जो अपनी विशाल और जटिल आंखों से
आसपास टकटकी लगा कर देख रही है
फिर वह कलाई उठाकर अपना चेहरा अच्छे से साफ़ करती है
अब वह अपने पंख खोलकर उड़ जाती है
मैं ठीक से नहीं जानती कि प्रार्थना क्या है
मुझे नहीं आता है ध्यान लगाना
कैसे गिरते हैं घास पर, कैसे टेकते हैं घुटने
कैसे बनते हैं निष्क्रिय और सौभाग्यशाली
कैसे टहलते हैं खेतों में
जो कि मैं अब तक करती रही हूं सारा दिन
मुझे बताओ इसके सिवा मुझे और क्या करना चाहिए था?
क्या मृत नहीं हो जाती हर चीज़, बहुत शीघ्र ही और अंतत:?
मुझे बताओ, कि तुम क्या करोगे 
अपने इस एक स्वच्छंद और कीमती जीवन के साथ?


[कविता की काया और संरचना में ऑलिवर की कविताओं ने एक ख़ासा परिवर्तन लाने का काम किया है. इन कविताओं में एक वह शांतिसम्पन्न रोमैंटिसिज़म तो है, जिसकी पैरवी कीट्स या वर्ड्ज़वर्थ किया करते थे, लेकिन काव्य को अमरीकी जीवन की बदहवासी से निकालने का काम भी ये कविताएं करती हैं. 2011 के एक इंटरव्यू में मैरी ऑलिवर ने यह ख़ुलासा किया था कि बचपन में वे यौन अपराध का शिकार हुई थीं. लेकिन इसी तथ्य के आधार पर देखें तो उनकी कविता बेहद क्षमा और अनुग्रहों से सींची हुई है. ऐसे में जब अमरीकी बदहवासी और जीवन का कालापन सबकुछ घेर रहा था, तो एक अकेले इंसान की जीवन से जुड़ी तैयारियों को लेकर ऑलिवर हमारे बीच आयीं, और एकाध हफ़्ते पहले उनका देहांत हुआ. बुद्धू-बक्सा के लिए इन कविताओं का अनुवाद रश्मि भारद्वाज ने किया है. अपने नोट में रश्मि ने यह साफ़ भी किया है कि ऑलिवर की कविता किन वजहों से महज़ “आसान” और “प्रेरक” कहकर ख़ारिज करने की कोशिश हुई है. हम अनुवाद और प्रस्तुतिकरण के लिए उनके आभारी हैं.]

Share, so the world knows!